चाँद में दाग नहीं था चाँद लगातार चलते जा रहा था रोकने की कोशिशों से लड़ता हुआ चाँद पर वार्ता आयोजित होने लगी निकम्मे जब वार्ता करते हैं तो दुनिया कहने लगती है चाँद में दाग है | अक्सर ख़ूबसूरती वार्ताओं से दागदार होती है | दाग से मुक्त होने के लिए चाँद को अकेले चलना होता है | |
creation and criticism
श्रीकांत वर्मा हवन चाहता तो बच सकता था मगर कैसे बच सकता था जो बचेगा कैसे रचेगा पहले मैं झुलसा फिर धधका चिटखने लगा कराह सकता था मगर कैसे कराह सकता था जो कराहेगा कैसे निबाहेगा न यह शहादत थी न यह उत्सर्ग था न यह आत्मपीड़न था न यह सज़ा थी तब क्या था यह किसी के मत्थे मढ़ सकता था मगर कैसे मढ़ सकता था जो मढ़ेगा कैसे गढ़ेगा।